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Showing posts from April, 2018

उफ़्फ़ ! बड़ी वाचाल होती हैं किताबें

जमानेभर के किस्सों का गवाह अगर कोई है, तो वो हैं  किताबें । अगर पढ़ने का सिलसिला शुरू कर दिया जाए तो इनकी बातें ख़तम ही नहीं होती.. एक कारवाँ सा चल पड़ता है किस्सों का, कहानियों का । किताबें आपके किसी प्रश्न का उत्तर नहीं देतीं वरन् आपको उस कहानी में साक्षी की भाँति प्रस्तुत कर देंगी फिर ये निर्णय आप पर छोड़ देती हैं कि आप अनुभव क्या करते हैं..! और उस अनुभव से क्या सीखते हैं यह आप पर निर्भर है..। किताबें ही हैं जो आपको समय के पार पहुँचा देती हैं.. इससे दिलचस्प बात क्या होगी कि कहानी, किताब किसी भी  समय की सुनाए, आपको उस काल, परिस्थिति में ज्यों का त्यों उतार देती है..। किताबें एक जगह बैठे बैठे कितने ही दिलचस्प स्थानों में पहुँचा देती हैं, और हम महसूस करते हैं कि हम उस स्थान में बैठ कर उस अमर कहानी का हिस्सा हैं । हाँ.. अमर कहानी ! क्योंकि जिस कहानी को किताबों ने आत्मसात कर लिया, फिर अमर हो जाती है वो कहानी । किताबें बारिश की पहली बूँदों के उस अभिनवपन को घर बैठे  महसूस करा देती हैं.. जिसे आप कभी न कभी महसूस कर चुके होते हैं । उन्मुक्त आकाश में चाँद की सहचरी चाँदनी से नहला देती ह

याज्ञक (भाग-1)

हज़ारों साल पुरानी गंगा अपनी पवित्रता और शून्यता समाए हुए उस दिन भी बह रही थीं..। समय ईसा के पाँच सौ साल पहले का है.. प्रयाग की पुण्य भूमि और माँ गंगा के तट पर शिष्य 'याज्ञक' अपने गुरु की दीक्षा के अनुसार गंगा की लहरों को महसूस करने की कोशिश कर रहा था.., बार-बार उसे उसके गुरु ऋषि श्रेष्ठ भारद्वाज के शब्द याद आ रहे थे कि " इतने शून्य हो जाओ कि स्वयं के अस्तित्व को महसूस कर सको, शून्य में होना ही विराट में होना है , जब तुम्हारी आवृत्ति गंगा की आवृत्ति से मेल करेगी तब तुम स्वयं में महसूस कर सकोगे गंगा को.., और तुम्हारी आत्मा पवित्र हो सकेगी.., और यहीं से शुरू होगा तुम्हारी नियति तक पहुँचने का मार्ग ।          शिष्य बैठा रहा ध्यानमग्न होकर सुबह के बैठे सांझ हो गई, सूर्य अस्ताचल की सीमा तक पहुंच गया और हवाएँ एक लय से बहने लगी थी । गुरुदेव ठीक कहा करते थे कि "जब तुम प्राकृतिक होने लगते हो तो समूची प्रकृति तुम्हारे साथ हो जाती है..।" वह अब पूरी तरह शांत हो चुका था, गंगा के कलरव को स्वयं में महसूस करने लगा था । जैसे वह भी आंदोलित हो उठा था वह एक स्वर्गीय आनंद में ख