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Showing posts from April, 2020

पलास के फूल सी तुम

                        पलास का वृक्ष और उसकी छाँव शुभे! तुम्हारी आंखों को, मैं झील-ए-शराब नहीं कहता! इसका अर्थ यह नहीं, कि मुझे उनकी गहराइयों का भान नहीं! कि उनके सौंदर्य की पहचान नहीं! बल्कि इसलिए, क्योंकि ये उपमाएँ दूषित हो चली हैं, पुरातन हो चली हैं । मैं तुम्हारे चेहरे को चंद्र-सम नहीं कहता, इसलिए नहीं, कि तुम्हारे सौंदर्य पर मैं मोहित नहीं! या मैं आतुर नहीं होता, तुम्हें सर्वोत्कृष्ट रूपसी कहने को ! बल्कि इसलिए, क्योंकि इस उपमा का सर्वाधिक निरादर किया है मानव ने । इसलिए मैं तुम्हारी उपमा करता हूँ, ‛पलास के फूल से!’ जैसे गर्मी की तपन में भी, दिलाते हैं- मन को सुकून ये पलास के सुन्दर पुष्प-गुच्छ । इनकी लालिमा, तुम्हारे रक्तवर्णी चेहरे का प्रतीक है । इनकी शीतलता, तुम्हारी मधुरता का प्रतीक है । इसीलिए मुझे प्रिय हैं दोनों- तुम्हारा पलासी-मुख औ पलास-वृक्ष । - विनय एस तिवारी

मेरे ही व्यक्तित्व-पथ के सहयात्री-- ‛अज्ञेय’

जिसका जन्म होता है उसका मृत्यु भी वरण करती है किन्तु ऐसा तो कम ही होता है! दुनियाँ के हर संस्कृति, सभ्यता और नैसर्ग की अनेकेन अभिव्यंजनाओं के सौंदर्य के पारखी, साहित्य के दैदीप्यमान सितारे, जिनका मैं सह-पथिक, मेरे सर्वप्रिय कवि-लेखक सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन ‛अज्ञेय’ दुनियाँ की तमाम जगहों को पार करते-करते अपने जन्मदिवस 07 मार्च को भी पार कर के ही स्वर्गलोक की यात्रा 04 अप्रैल को आरम्भ किये । जिसका जन्म होता है उसकी मृत्यु भी होती है किन्तु ऐसा तो कम ही होता है न!! कि कोई दुनियाँ की यात्रा करते-करते अपने जन्म दिनाङ्क को पार करके ही स्वर्ग की यात्रा आरम्भ करे । मेरे सह-पथिक, सह-व्यक्तित्व अज्ञेय को पुण्यतिथि पर नमन । अज्ञेय की पसंदीदा अंग्रेजी रचनाओं में एक, जिसे अनूदित किया है मैंने हिन्दी में अज्ञेय ख़ातिर-- "My candle burns at both ends It will not last the night; But ah, my foes, and oh, my friends - It gives a lovely light." “मेरे जीवन की दीप्ति ज्वलित है दोनों छोरों से, ये समूची रात नहीं जल पाएगी; किन्तु आह! ओ शत्रु मेरे, और ओह! मित्र मेरे, यह