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Showing posts from February, 2019

कहा न मुझे नहीं रास आतीं दीवारें

कहा न ! मुझे नहीं रास आतीं नक्काशी से सुसज्जित दीवारें । मुझे तो रास आती हैं प्रकृति की लावण्यमयी सौंदर्यता । मुझे रास आते हैं ऐसे शहर जो प्रकृति की गोद में समाए होते हैं जैसे सतपुड़ा की गोद में ' पचमढ़ी ' , जैसे पहाड़ों से घिरा सीधी ,और जैसे मेरा गाँव । जैसे अमरकंटक, जहाँ चौबीसों घंटे नर्मदा की कल-कल का सप्तसुरी संगीत तारतम्यता से बजता हुआ आपके कर्णपटलों में पहुँचता है और आप अनायास एक स्वर्गीय संगीत में सुधि खोकर खो जाते हैं । जहाँ पहुँचते ही कल्पनाओं से जेहन में उतरकर सच लगने लगती है नर्मदा और सोन की कहानी । जहाँ प्रेम यथार्थ में परिणित होकर दिला जाता है राधा कृष्ण के प्रेम की मधुर याद । जहाँ जनश्रुतियाँ साँस लेती दंतकथाओं के यथार्थ से ऐसे रूबरू होती हैं जैसे हमने भी तो देखा हो इन्हें हूबहू इन्ही कहानियों की तरह । वस्तुतः हम समा जाते हैं इन जनश्रुतियों के किरदारों में या ये कहूँ की हम किरदारों में जीने लगते हैं । दीवारें तो बस गवाह होती हैं किसी कहानी की किन्तु ऐसी जगहों में आप किरदारों को स्वयं में जीवित पाते हैं । आप स्वयं के करीब होते हैं , सौंदर्य के नित नए प्रतिमा

समुद्र तट और पहाड़ में प्रिय

मुझे समुद्र तट में बैठना ज्यादा सुकूनभरा होगा पर्वत के अपेक्षाकृत । मैं ज्यादा समय वहाँ बिता सकूँगा पर्वत की तुलना में । इसके कई कारण हैं, किंतु, सबसे बड़ा कारण ये है कि समुद्र तट में एक तरह का स्वाभाविक खुलापन होता है जो पर्वत में नहीं, पर्वत लैंड लॉक्ड सरीखे होता है । इसलिए आप समुद्र में ज्यादा तरोताज़ा महसूस करेंगें । और पर्वत में सबसे कमी ये है कि ये आपको जमीन से दूर कर देता है जिससे जमीन पर आने की प्रवृत्ति बलवती होती जाती है । समुद्रतटीय शहर जैसे लंदन, जैसे न्यूयॉर्क, जैसे इंदिरा पॉइन्ट ( अंडमान निकोबार द्वीपसमूह ) अधिक आनंदप्रद होते हैं । वहाँ बयार खुलेपन से आकर आपको स्पर्श करेगी जबकि पहाड़ों में हवा बँधी बँधी सी लगती है । पहाड़ी हवाओं में किसी दूसरे देश से संदेश लाने का अनुभव भी नहीं है । जैसे किसी दूर देश से सदियों पहले समुद्री व्यापारियों का प्रेम संदेशा आया करता था , कभी हवाओं से तो कभी समुद्र से आने वाले समुद्री जहाजों से । पहाड़ में उतार है चढ़ाव है, जबकि समुद्र तट दोनों ओर समतल । इसीलिए मन ज्यादा देर पहाड़ में नहीं रह सकता । पहाड़ अल्पकालिक सुकूनी जगह है जबकि सम

शताब्दियों का साक्षी 'बरदहाघाट '

                            (बरदहा घाट ) शताब्दियों का साक्षी 'बरदहा घाट' __________________________________ यथा मुम्बई से पुणे को जोड़ता है 'भोर घाट' , केरल से तमिलनाडु को जोड़ता है 'पाल घाट' । जैसे स्लोवाकिया को पोलैंड से जोड़ता है ' टाट्रा पर्वत श्रृंखला ' ठीक वैसे ही डभौरा को रीवा से जोड़ता है 'बरदहा घाट' । डभौरा, मध्यप्रदेश के उत्तर पूर्वी सीमांत की ओर से तथा रीवा जिले का पहला रेलवे स्टेशन है । पहला दोनों आयामों में । यानी एक तो रीवा राज्य ( वर्तमान रीवा जिले ) का सबसे पहला स्टेशन , दूसरा मध्यप्रदेश के उत्तर पश्चिमी सीमा का पहला स्टेशन ( सीमा में ) । जो इलाहाबाद ( प्रयाग ) से मुम्बई रुट की सभी चिघाड़ती रेलगाड़ियों का बाहें फैलाए स्वागत करता है मध्यप्रदेश में ।जो आगे बढ़ते हुए प्रदेश पार पहुंचती है महाराष्ट्र । इसी डभौरा से बस चलना शुरू करती है तो बरहुला,अतरैला होते हुए लगभग आधी दूरी तय करते ही सीना तान कर बाहें फैलाए दिखाई देता है 'बरदहा घाट'  । बरदहा घाट रीवा-पन्ना के पठार का पूर्वी छोर है । जिसकी प्राकृतिक लावण्यत