परमहंस योगानन्द कृत 'योगी कथामृत' और आंशिक रूप से रॉबिन शर्मा की ' द मॉन्क सोल्ड हिज फेरारी ' ( सन्यासी जिसने अपनी संपत्ति बेंच दी ) के बाद अगर कोई पुस्तक मुझे पराभौतिक रस का रसास्वादन कराई है तो वह है ओम स्वामी कृत " इफ ट्रुथ बी टोल्ड " ( यदि सत्य कहूँ तो..) । इत्तेफाकन एक ही पुस्तक बची थी यह उस दुकान में, मानो मेरे लिए ही रखी थी । यह एक गृहस्थ व्यक्ति के सन्यस्त होने की कहानी है, मूलतः यह संस्मरण है जिसका आरम्भ वाराणसी में किसी शांतिप्रिय घाट खोजने से होता है जहाँ एकांत मिल सके , जो लेखक को नहीं मिलते । कदाचित ओम स्वामी प्रयाग आए होते तो उन्हें मन पसंद घाट मिलता "राम घाट" मेरा स्वयं प्रिय घाट है जहाँ बड़ी आसानी से ध्यान लगाया जा सकता है , माँ गंगा को महसूस किया जा सकता है अपने अंदर । निश्चित ही मनुष्य के विचित्र प्रजाति है क्योंकि हमें जो भी प्राप्त होता है हम उससे भिन्न प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं । इस संस्मरण का एक गद्यांश मुझे जँचा जब वो तैलंग स्वामी के मठ जाते हैं तो वहाँ उनके शिष्य जो संभवतः उनका स्थान ले च
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