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Showing posts from July, 2018

इफ ट्रुथ बी टोल्ड

परमहंस योगानन्द कृत 'योगी कथामृत' और आंशिक रूप से रॉबिन शर्मा की ' द मॉन्क सोल्ड हिज फेरारी ' ( सन्यासी जिसने अपनी संपत्ति बेंच दी ) के बाद अगर कोई पुस्तक मुझे पराभौतिक रस का रसास्वादन कराई है तो वह है ओम स्वामी कृत " इफ ट्रुथ बी टोल्ड " ( यदि सत्य कहूँ तो..) । इत्तेफाकन एक ही पुस्तक बची थी यह उस दुकान में, मानो मेरे लिए ही रखी थी ।       यह एक गृहस्थ व्यक्ति के सन्यस्त होने की कहानी है, मूलतः यह संस्मरण है जिसका आरम्भ वाराणसी में किसी शांतिप्रिय घाट खोजने से होता है जहाँ एकांत मिल सके , जो लेखक को नहीं मिलते । कदाचित ओम स्वामी प्रयाग आए होते तो उन्हें मन पसंद घाट मिलता "राम घाट" मेरा स्वयं प्रिय घाट है जहाँ बड़ी आसानी से ध्यान लगाया जा सकता है , माँ गंगा को महसूस किया जा सकता है अपने अंदर ।                    निश्चित ही मनुष्य के विचित्र प्रजाति है क्योंकि हमें जो भी प्राप्त होता है हम उससे भिन्न प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं । इस संस्मरण का एक गद्यांश मुझे जँचा जब वो तैलंग स्वामी के मठ जाते हैं तो वहाँ उनके शिष्य जो संभवतः उनका स्थान ले च

याज्ञक (भाग-2)

..गुरुदेव तब से याज्ञक के मन को पढ़ रहे थे जब से वह ध्यान में बैठा था । उसकी अनुभूति भारद्वाज मुनि ने भी महसूस की थी इसीलिए याज्ञक के संभावित प्रश्नों के उत्तर की खोज में ध्यानमग्न हो गए । हे गुरुदेव ! मैंने आपके कहे अनुसार गंगा की चंचलता , पवित्रता और आवृत्ति को महसूस किया है, मुझे दिखाई दिया है ' जंगलों के बीच एक गाँव कुछ मृद्भाण्ड और एक लड़की की आवाज़ । " क्या मेरी नियति ने मुझे यही उपलब्धि लिखी है..? क्या मेरी मंजिल यही है..?" -- यह कहकर याज्ञक विस्मयकारी नेत्रों से गुरुदेव की ओर देखा । तब ऋषिश्रेष्ठ ने आंखें खोलते हुए कहा. " मूल्य मंज़िल का या मिलने वाली उपलब्धि का नहीं होता वत्स, मूल्य रास्तों का है..मूल्य यात्राओं का है.., यात्राओं से मिलने वाले अनुभव का है, उपलब्धि तो प्रतीक मात्र है उन यात्राओं से पार होने का ।" ".. तो क्या मुझे भी यात्रा करनी चाहिए ?" - गुरुदेव के संकेत को समझते हुए याज्ञक ने पूँछा । " निःसंदेह ! तुम देवप्रयाग जाओ वहाँ मेरे गुरुभाई देवयादृ के आश्रम में जाना , वही तुम्हारी नियति बताएँगे । " पंद्रह दिन बाद यात्