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Showing posts from March, 2020

ग्रीष्म की साँझ

                                    (गर्मी की एक साँझ)                       मेरे लिए, गर्मियों की शामें अक्सर उदासीनता से भरी होती हैं । यह गर्मियों की साँझ ही है , जब मेरे लिए एकांत की चाहना सर्वाधिक प्रबल होती है । साँझ की रक्तवर्णी रंगीयता, इसके साथ आकाश की अभेद्य आकाशीय-नीलिमा, और हर तरफ सूखे-वृक्ष, जिनकी हरित-पत्तियों को तपन ने भष्म कर दिया है, इन्हें देख कर जाने क्यों मन अवसाद से भर जाता है! जबकि हम जानते हैं, कि कल सूरज फिर निकलेगा, फिर घाम होगा और फिर साँझ । नियति का यह क्रम नियत है । जाने क्यों, सूर्य का विदा होना, अपने साथ उत्सुकता और उन्मुक्तता को भी साथ ले जाता है! और भर देता है एक अज्ञात व्याकुलता से मुझे । “मैं देख रहा हूँ, सूर्य-अस्त होते पश्चिम में, उभर रहा वैराग्य अचानक, मन-अवसादी! हाय! विभा तेरा जाना, यूँ तोड़ रहा है, ज्यों, दिनेश मेरा अंतस ही निचोड़ रहा है ।” ये सच है, कि रात इस धरित्री को एक नए रंग में रँग देती है, पर इसका आरम्भ तो साँझ से ही होता है न! क्या यह रंगीयता अपने साथ असारता का भी बोध लाती है? क्या यह विषाद, वस्तुओं को स्पष्ट न देख पाने क

I want to die while you love me - Douglas Johnson

                  (  पेंटिंग: इलाहाबाद विश्वविद्यालय के बी.एफ.ए. फाइन आर्ट के एक स्टूडेंट द्वारा) मैं तुम्हारे प्यार में रह प्राण खोना चाहती हूँ, जबकि मेरी रूपता तुममें बसी हो, और जबकी होंठ में मेरे हँसी हो, और मेरे केश में आभा बसी हो । मैं तुम्हारे प्यार में रह प्राण खोना चाहती हूँ, और अब भी बिस्तरों में जो मिले थे! हूँ संभाले सब तुम्हारे उग्र चुम्बन, उस वक्त के स्नेह ख़ातिर, जब मरूँ मैं । मैं तुम्हारे प्यार में रह प्राण खोना चाहती हूँ, ओह्ह! ऐसा कौन जीवन चाहता है? प्रेम में जब शेष भी कुछ न बचा हो, माँगने को, और न ही सौंपने को । मैं तुम्हारे प्यार में रह प्राण खोना चाहती हूँ, कभी भी-जरा सा भी नहीं, इस पूर्णता के दिवस की गरिमा- देखो! न ही मद्धम पड़े या रुके कहीं । - Georgia Douglas Johnson हिन्दी अनुवाद: विनय एस तिवारी