नशा करना ही नशा करना है, लेकिन.. __________________________________ उमर खैयाम तो सदियों पहले ही अन्योक्ति में नशा का उल्लेख कर चुका है, तभी तो उसने संसार को मयकदा, व्यक्ति को शराबी (मयकश), और सांसारिक प्रसाद को मय बताया । यदि हम और गहरे जाएँ तो सांसारिक प्रसाद ईश्वरीय प्रसाद में परिणित हो जाता है.. और ये बातें अंगूर की शराबों से ऊपर उठ कर एक पराभौतिक, प्राकृतिक नशे का संकेत करती हैं । कोई व्यक्ति किसी भी नशे में नहीं बहकता वरन वह नशे के नशे में बहकता है.. मैंने अनुभव किया कि यदि नशे में होते हुए मानसिक तल पर होश रखा जाए , एक दृष्टा बना जाए तो एक नया और अचंभित करता अनुभव प्राप्त होता है , फिर आप एक बेहतरीन श्रोता बन जाते हैं, सारे प्रश्न मिट जाते हैं कोई प्रश्न शेष ही नहीं बचता । यही मन के समर्पण की सूचना है .... तब आप स्वयं को प्रकृति को सौंप चुके होते हैं.. मन खाली हो जाता है तब प्रकृति भरती है आपके खालीपन को ईश्वरत्व से । © Vinay S Tiwari
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