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Showing posts from October, 2017

शकुनश

जहाज में घूमने वाले जहाजियों और भेड़ों के रेवड़ के साथ नित नए और दिल को छू लेने वाले जगहों में घूमते गड़रिये के अलावा एक और पेशा होता है जो घुमक्कड़ी जीवन शैली जीते हैं वो होते हैं ' फेरीवाले ' ।                  लड़के का नाम था 'अत्रेय' । अपनी बैलगाड़ी में रोजमर्रा के साजो सामान भर कर वह अक्सर एक गांव से दूसरे गांव घूम-घूम कर बेचता था । उसके साथी उसकी गाड़ी खींचने वाला ऊँट,और एक कोरे कागज की किताब जिसमे अक्सर वो उसे पसंद आने वाले लोंगों के चित्र और दिल को छू लेने वाली रेतों के टीलों की आकृतियां बादलों में छिपे सूरज की दो बादलों के बीच से  आती रश्मि जो धरती और आकाश के बीच सेतु बनाती थी उकेरता रहता था ।और सर पर चिलचिलाती धूप से बचने के लिए एक टोपी जो निशानी थी किसी के प्रेम की ।                 इसकी एक और विशेषता थी चेहरा पढ़ने की कला । किसी का भी चेहरा देख कर मनःस्थिति पढ़ सकता था ।                                                               लगभग सुबह से बीस मील चल चुका था अब यहाँ से पच्चीस कोस तक सिर्फ रेगिस्तान ही रेगिस्तान था तब जा कर एक गांव पड़ता था 'सुदमापु

एक अनकहा रिश्ता

उस दिन कॉलेज में मेरा पहला दिन था । इसीलिए मैं थोड़ी जल्दी कॉलेज पहुँच गई थी और मेरी स्कूल फ्रेंड तृशा भी मेरे साथ थी, मैं मेडिवल हिस्ट्री डिपार्टमेंट में घूम रही थी जो मेरा सब्जेक्ट भी था, मैंने सोचा जब तक क्लासेस नहीं खुल जातीं घूम लिया जाए...।  मैं क्लास से कुछ दूरी पर थी क्लास खुल गई थी कुछ बच्चे भी आ गए थे,  तभी एक लड़का बाहर से हॉल में आया ,एक अजीब सी ऊर्जा थी उसमें ,उसका चेहरा खिला था .. ज़ीरो साइज दाढ़ी कर रखी थी उसने जो एक विशेष नक्श में थी, उसने कैप लगा रखा था । कुलमिलाकर वो बहुत स्मार्ट लग रहा था । मेरे पांव रुक गए मैं उसे देखती रही.. अनायास मैं भगवान से मनाने लगी ' हे भगवान ! वो मेरी ही क्लास में हो..' । वो उसी क्लास में गया -मेरी क्लास में । मैं इतनी खुश हो गई थी कि मुट्ठी बाँध कर नाच उठी थी । वो मुझसे दो टेबल पीछे बैठा था लेकिन मेरा मन तो उसमें ही था.. मैं बदल गई थी एकदम से.. तृशा परेशान हो गई थी और उसने कहा कि तुझे प्यार तो नहीं हो गया...? हाँ.. सच में मुझे प्यार हो गया था... मैंने ध्यान दिया वो भी मुझे देखता था.. और गाहें-बगाहें हमारी नज़र मिल जाती तो मुझस