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Showing posts from November, 2019

सुनो! शाश्वत-हिम गिरि, मैं जरूर आऊँगा..

मैंने नहीं देखा है हिमालय । मैं उस दृश्य का साक्षी नहीं बना हूँ, जब दिन में हिमशिखरों से बादल हटते हैं और दिखता है सूर्य-रश्मियों से सज्जित स्वर्ण-शिखर । मैंने तो कसौनी भी नहीं देखा, और न ही रानीखेत । मैंने स्याह सड़कों पर जमी बर्फ ‛ ब्लैक-आइस’ नहीं देखी । मैंने देखा है तो अपने गाँव में ऊँचा पहाड़ और जब भी उसे बादल से घिरते देखता हूँ, तो अनायास ही कल्पना करता हूँ कि, अब बादल हटेंगे और दिखेगा पहाड़ का मुकुट हिममयी । तब, मैं कहता हूँ हिमालय से, सुनो! शाश्वत-हिम गिरि, मैं जरूर आऊँगा, मैं आऊँगा अपने लिए तुम्हें देखने । तब क्या तुम मुझे दिखाओगे अपनी सौंदर्यता? अपनी मोहकता?, क्या दोगे तुम मुझे शून्यता? क्या दे सकोगे मुझे वह परम रहस्य, जो नचिकेता ने जानना चाहा था, मृत्यु के देवता से ? हे मेरे मीत हिमालय! मैं अभी मैदान की सपाटता के सौंदर्य को जी रहा हूँ, मैं अभी गवाह बन रहा हूँ गङ्गा और यमुना के मिलन का । मैं पूर्णिमा में चन्द्र की श्वेत-किरणों को गङ्गा के कछार में पड़ते ही, रेत से प्रकीर्णित आभा के दृश्य का सौंदर्य चख रहा हूँ ।                      लेकिन आऊँगा जरूर, तुम्हें देखन

जब सूरज को रंगते देखा एक गाँव

मुख्य सड़क से थोड़ी ही दूर तो बसा था गाँव । एकदम सीधी सड़क और उसके दोनों ओर एक दूसरे के सामने खड़े श्वेत घर । यही विशेषता थी उस गाँव की, उसे ‛श्वेत घरों वाला गांव’ के विशेषण से भी आस-पास के गाँवों में जाना जाता था । वो शुरुआती गर्मियों के मौसम, यानि फागुन में दिन का तीसरा पहर, जब मैं बाहर निकला, लगभग साढ़े चार बजे शायं । धूप पक चुकी थी, यानी उसका ताप सामान्य हो रहा था और सूर्य-रश्मि श्वेत से संतरी होने की ओर अग्रसर । गाँव के आग्नेय दिशा ( दक्षिण-पूर्व) पर थोड़ी ही दूर में एक छोटी सी पहाड़ी थी, पहाड़ी इतनी छोटी थी कि पंद्रह मिनट में उसके शिखर पर पहुँचा जा सकता था । यूँ तो पहाड़ी में बड़े पेड़ न थे, किंतु कुछ पेड़ जैसे बरारी व करौंदा के थे ।                  उस दिन, उस पंक्तिबद्ध खड़े श्वेत घरों को श्वेत प्रकाश के रंग से धीरे-धीरे संतरी रंग में ढलते हुए देखा मैंने । मैंने उस दिन पहली बार अस्ताचल की सीमा देखी और उसके पीछे डूबता हमारा पोषक सूर्य, क्योंकि हमारे गाँव में तो पर्वत के ठीक पीछे डूब जाता है । किन्तु, ये पहला अवसर था, जब मैंने सूर्य की रक्तिम रश्मियों को रंगते देखा था एक गाँव । म