प्रोफ़ेसर ऋषिकांत इलाहबाद विश्वविद्यालय के दर्शन विभाग के विभागाध्यक्ष हैं.. छोटी कद-काठी ,सफ़ेद बाल.. उनकी ऊर्जा उनके निकट आते ही महसूस होने लगती है । हालाँकि मेरी बुद्धि अभी इतनी विकसित नहीं हुई है कि मैं दर्शन और दर्शन के इतने बड़े विद्यार्थी के विषय में विचार व्यक्त कर सकूँ... लेकिन ये उनके प्रति प्रेम है जो किसी दायरे या सीमा से बढ़कर मजबूर करता हैं उनपर मानसिक तौर पर समर्पण के लिए..उनकी श्रेष्ठता समझने के लिए । वे स्वयं एनालिटिकल फिलॉसॉफी के विद्यार्थी रहे हैं.. अॉस्ट्रिन के ऊपर उनका रिसर्च भी रहा है...लेकिन जितना बेहतरीन मुईर, विटगेन्स्टिन, क्वाइन, स्ट्रॉसन आदि को पढ़ाते हैं उतना ही बेहतरीन इंडियन फिलॉसॉफी या फिलॉसॉफी ऑफ़ रिलिजन पढ़ाते हैं.. उनकी तो एक पुस्तक तक फिलॉसॉफी ऑफ़ रिलिजन पर है "धर्म दर्शन" जो पियर्सन पब्लिकेशन से प्रकाशित है । मुझे लगता है धर्म दर्शन पर रूचि रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति को यह पुस्तक पढ़नी चाहिए.... मुझे उनके निकट जाने का सौभाग्य तो प्राप्त नहीं हुआ किन्तु मैं उनकी क्लासेज में जरूर उपस्थित रहता था.. मुझे उनकी क्लास में एक अनिर्वचनीय मज़ा आता था.
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