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Showing posts from August, 2019

रामघाट, प्रयागराज ( Ramghat, Prayagraj )

राम घाट, प्रयागराज । मैंने माँ गँगा के कितने शहरों के कितने घाट घूमे होंगे, लेकिन जो अनूठापन, जो अल्हड़पन मैंने रामघाट में देखा वो कहीं नहीं । बनारस के घाट ऐसे हैं जैसे किसी खूबसूरत बगीचे में फूलों की क्यारियाँ, सब कुछ तरतीबी से भरा हुआ । निश्चित ही यह आंखों के लिए आनंदित करने वाला होता है, लेकिन इसमें बनावट है, इनमें मानवीय संरचनाओं में ढल जाने के कारण गँगा-जल में रंग जाने की विशेषता ही समाप्त हो गई, इनकी तितीक्षा ही समाप्त हो गई । लेकिन, प्रयागराज का रामघाट ऐसे है जैसे हिमालय । या जैसे अज्ञेय का शेखर, जो अपने आप में प्रतिष्ठित है अपनी खूबियों के कारण । सब कुछ प्राकृतिक, बनावटी कुछ भी नहीं । यूँ तो, प्रयागराज में कोई ऐसा घाट नहीं है जिसमें मानव की शिल्पकला द्वारा घाटों में कुछ क्षेपक रचा जाए । किन्तु फिर भी एक रमणीयता है जो इसे संगम के होते हुए भी जीवंतता से पूरित करती है । वर्ष भर रखता है तितीक्षा, इसीलिये तो, सावन के बाद इसे अपने में समाहित कर लेती हैं गँगा । ठीक इस घाट के पहले, हरिहर गंगा आरती समिति द्वारा सायंकाल दिव्य गँगा आरती और तब ही आकाश भर चाँदनी की सौंदर्यता,