हाँ, मैं एक पत्र लिखना चाहता हूँ, ये दौर पत्र का तो नहीं ! इस रफ्तार भरी दुनियाँ में किसको इंतज़ार पसंद है ? लेकिन पत्र तो इंतज़ार चाहते हैं ना ! आपके हाथों से छूटने के बाद जाने कितने रास्तों से गुज़र कर , कितने हाथों को छूते हुए आखिर में पहुँचता है उस हाँथ तक, जो उसकी मंजिल है । तब जा कर मुकम्मल होता है उसका सफ़र, और कभी-कभार भटक जाता है रास्तों में, और फेक दिया जाता है `डेड लेटरों' वाले कंपार्टमेंट में । डेड लेटर, ऐसे पत्र होते हैं जिन्हें लिखने वाले ने सही पता नहीं बताया होता या फिर, वो जिसे पढ़ना है बदल देता है अपना घर, बिना इस परवाह के कि शायद किसी दिन कोई पत्र आ गया तो ! तो,मैं भी पत्र लिखना चाहता हूँ लेकिन किसे ? इसका कोई सटीक जवाब तो मेरे पास नहीं है लेकिन पहला पत्र, मैं स्वयं को लिखना चाहता हूँ । मैं खुद को देखना चाहता हूँ कि अपनी दृष्टि में किसी और के स्थान से कि कैसे दिखता हूँ मैं ? वस्तुतः मैं एक दृष्टा बनना चाहता हूँ । मैं खुद को एक बार अपने बारे में बताना चाहता हूँ, मैं खुद को बताना चाहता हूँ कि मैं देखना चाहता हूँ पहाड़ों का सौंदर्य, मुझे क्यारियों में सुसज्
This is blog of Vinay . Here you can read intresting and adventures topic .