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Showing posts from January, 2024

छिंदवाड़ा डायरी - 25 जनवरी 2024

छिंदवाड़ा डायरी - 25 जनवरी 2024                         चित्र: प्रतीकात्मक आज पौष मास के शुक्ल पक्ष के पूर्णिमा की रात्रि चंद्रमा इतना प्रोज्ज्वल था की बिना किसी अन्य प्रकाश के इस धरित्री और नभ के इस शीतयुक्त सौंदर्य को आँखभर निहारा जा सकता था। इस समय मैं दक्षिणी मध्य प्रदेश में हूॅं इसीलिए इस सुख से लाभान्वित हो पा रहा हूं क्योंकि उत्तरी मध्य प्रदेश सहित समूचा उत्तरी भारत इस समय भीषण शीत और कोहरे से ढंका हुआ है । वहाँ तो इस सौंदर्य का स्वादन करना कहाँ संभव है ? वहाँ ऐसा आनंद ग्रीष्म में ही मिलता है जब चांदनी रातें फाल्गुन से ज्येष्ठ तक निरंतर प्रोज्जवल होती चली जाती है । चंद्र का यह नव प्रकाश धरित्री को धवल चंद्र प्रभा से विभोर कर देती है । यह सुख तो आत्मविभोर करने वाला है ही किन्तु शीत में चंद्र प्रभा का सौंदर्य देखना उत्तर भारत में बहुधा कम ही होता है । यह चाॅंदनी चाहे शिशिर ऋतु की हो या ग्रीष्म ऋतु की, होती बड़ी मनमोहक है और साथ रहता है अनावृत एकान्त । अमृतलाल वेगड़ जी यूँ ही नहीं कहते कि चन्द्रमा के पास ऐसा जामन है जो कि सूर्य के तेज और तापयुक्त प्रकाश को शीतल और कोमल

लोकमानस के राम

ये लेख सच्चिदानंद मिश्र जी का है जो फिलोसॉफी के प्रोफ़ेसर और विद्वान हैं। पढ़िए शानदार लेख है.. । #लोकमानस_के_राम कौन से राम को मैं पसन्द करता हूं? अचानक एक मित्र का प्रश्न मुखपुस्तक (फेसबुक) पर तैरता हुआ दिख गया कि वे कौन से राम हैं जिनको आप पसन्द करते हैं? तुलसी के, कबीर के, गांधी के या एक दल विशेष के?  सोचता हूं कि क्या राम कई एक हैं? या एक ही राम को अलग अलग लोगों ने अलग अलग रूपों में देखा? वह कौन सा रूप है राम का जिस राम को मैं पसन्द करता हूं ? राम को तुलसी ने भी देखा है तो कबीर ने भी। राम वाल्मीकि के भी हैं तो कालिदास के भी। गांधी के भी हैं और लोहिया के भी। इतना ही नहीं वे राम अल्लामा इकबाल के भी हैं जो उनकी उर्दू कविता में प्रकट होते हैं। राम को कम्बन ने भी देखा है और जैन व बौद्ध कवियों ने भी। एक राम वह भी हैं जो राम की शक्तिपूजा में प्राणवान होते हैं। जो रावण के पराक्रम से पार नहीं पाते तो भयभीत हो जाते हैं और शक्ति प्राप्त करने के लिए शक्ति की आराधना करते हैं। राम के भिन्न भिन्न रूपों को तुलसी ने भी रेखांकित किया यह कहते हुए कि "नाना भांति राम अवतारा।  रामायण श

शिशिर ऋतु की चांदनी रात में आकाश में उड़ता हुआ वायुयान..

शिशिर ऋतु की चांदनी रात के आकाश में उड़ता हुआ वायुयान और विज्ञान के इस चमत्कार में उड़ते हुए लोग । वायुयान विज्ञान का चमत्कार ही तो है! भला इस धरती से मीलों दूर ऊपर उसका उड़ते चले जाना । एक रात जब मैं शिशिर ऋतु में छत पर टहल रहा था तभी तो देखा था उस वायुयान को चांदनी रात में उत्तर से दक्षिण की ओर चंद्रमा के ठीक मध्य से जाते हुए ठीक रात्रि के बारह बजे । जब वायुयान चंद्र के ठीक बीच में से जा रहा था तब सहसा मुझे लगा कि जैसे: किसी के अपने कहीं दूर जा रहे होंगे अपने किसी सपने के लिए । एक ओर उत्साह नए भविष्य के लिए, वहीं दूसरी ओर विरह, किसी अपने का दूर हो जाना । जब हम किसी के साथ जीवन जीते हैं तो उसे अपनी आदत बना लेते हैं इसीलिए जब वह दूर जाता है तो अपना एक अंश छूटता हुआ महसूस होता है । चाहे माता-पिता का पुत्र के लिए हो या पति का पत्नी के लिए हो या अन्य कोई । बहुधा माता का पुत्र के लिए या पत्नी का पति के लिए विरह ‘भावनात्मक’ होता है और यही भावात्मकता ही उसका सौंदर्य है । जैसे विरह था माता कौशल्या का पुत्र श्री राम के लिए या उर्मिला का लक्ष्मण के लिए या फिर यशोधरा का सिद्धार्थ के