छिंदवाड़ा डायरी - 25 जनवरी 2024
आज पौष मास के शुक्ल पक्ष के पूर्णिमा की रात्रि चंद्रमा इतना प्रोज्ज्वल था की बिना किसी अन्य प्रकाश के इस धरित्री और नभ के इस शीतयुक्त सौंदर्य को आँखभर निहारा जा सकता था। इस समय मैं दक्षिणी मध्य प्रदेश में हूॅं इसीलिए इस सुख से लाभान्वित हो पा रहा हूं क्योंकि उत्तरी मध्य प्रदेश सहित समूचा उत्तरी भारत इस समय भीषण शीत और कोहरे से ढंका हुआ है । वहाँ तो इस सौंदर्य का स्वादन करना कहाँ संभव है ? वहाँ ऐसा आनंद ग्रीष्म में ही मिलता है जब चांदनी रातें फाल्गुन से ज्येष्ठ तक निरंतर प्रोज्जवल होती चली जाती है । चंद्र का यह नव प्रकाश धरित्री को धवल चंद्र प्रभा से विभोर कर देती है । यह सुख तो आत्मविभोर करने वाला है ही किन्तु शीत में चंद्र प्रभा का सौंदर्य देखना उत्तर भारत में बहुधा कम ही होता है । यह चाॅंदनी चाहे शिशिर ऋतु की हो या ग्रीष्म ऋतु की, होती बड़ी मनमोहक है और साथ रहता है अनावृत एकान्त ।
अमृतलाल वेगड़ जी यूँ ही नहीं कहते कि चन्द्रमा के पास ऐसा जामन है जो कि सूर्य के तेज और तापयुक्त प्रकाश को शीतल और कोमल बना देता है किंतु बेचारा सूर्य! उसके पास ऐसा कोई जामन नहीं ।
यहाँ रात्रि के आकाश पर बहुधा कोई धवल या स्याह बादल नहीं दीखते इसीलिए चंद्रमा का रात्रि में प्रोज्जवल दिखना मुझे आसानी से दिख जाता है, रात में चंद्र के चारों ओर से घेरे हुए प्रकाश का आवरण था मानो चंद्र की शोभा बढ़ाती हुई उसकी आभा हो! मेरी आंखें प्रकृति के इस विलक्षण सौंदर्य को देखकर मुग्ध होती रहीं ।
मैं चंद्र में खोया प्रार्थना करता रहा, हे राम! मुझे भी कोई ऐसा जामन दो जिससे मैं भी विपत्तियों, दुखों व जीवन के सुखमय क्षणों में भी बना सकूॅं स्वयं को निर्मल, कोमल, प्रेममय और शान्ताकार ।
विनय शंकर तिवारी
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