मुझे वह पहली कक्षा में नहीं मिली थी। दरअसल ‛पहली कक्षा’ मैंने उस स्कूल में पढ़ा ही नहीं, उस स्कूल में तो मैं ‛दूसरी’ में गया था। वह, दूसरी और तीसरी कक्षा में भी नहीं आई थी, वह तो आई चौथी में । अक्सर मैं स्कूल-सत्र शुरू होने के काफी दिन बाद स्कूल जाता था । ये जुलाई 2005 का मध्य था, और मेरा कक्षा चौथी के सेसन का पहला दिन, जब मुझे पता चला कि क्लास में एक बेहद खूबसूरत सी दिखने वाली एक लड़की आई है, मैं क्लास में गया तो वाकई एक ‛क्यूट’ सी दिखने वाली लड़की, लड़कियों के बेंच में दूसरे नम्बर की सीट पर ठीक बीच में बैठी थी । मैंने गौर से देखा तो उसके बाल महज़ उसके कंधों को छू रहे थे, कंधे को छूते उसके सुलझे बालों में मैं उलझ गया था पहली बार! जिसे देख कर मुझे पहली बार लगा कि मुझे इससे बात करनी चाहिए, पर अक्सर मेरा शर्मीला स्वभाव रोड़ा बन जाता था, उससे बात करने में । फिर एक दिन! जब वो स्कूल आ रही थी, तो उससे पहली बार मैंने अपने रूम और स्कूल के पास वाले मैदान में मैंने बात की । क्या बात की ये तो याद नहीं लेकिन हाँ, उस दिन से मेरी उससे यदा कदा बात होने लगी । ऐ संदेशवाहक मेघ! जैसे तुमने कालिद
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