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Showing posts from July, 2017

ट्रैफिक जाम

मैं अपनी एक पुरानी डायरी जो रद्दी वाले को पुराने अख़बार देते वक्त मिली थी पलट रहा था । उसमे कुछ पुराने कॉन्टेक्ट नंबर थे..और कुछ लोगों के नाम जो मेरी ज़िन्दगी में आने वाले सबसे अच्छे लोग थे । मैं एक-एक करके पन्ने पलटता जाता मानो अपने ज़िन्दगी की किताब पलट रहा हूँ ...धीरे-धीरे अंगुलियां एक नाम पर ठहर गईं ।     ' रिया ' एक नाम जो मेरी ज़िन्दगी में आने वाले नामों में सबसे अच्छा नाम है । वैसे रिया नाम भी कितना क्यूट लगता है न..?? सोचो वो कितनी खूबसूरत रही होगी ।       पहली बार देखा था उसे केमेस्ट्री की कोचिंग में... मैं भी साईकिल से था और वो भी । ओल्ड मॉडल लेडीज साईकिल को हाँथों में थामे हुए पैदल आ रही थी । पिंक कलर के सूट के ऊपर हल्की कत्थई शॉल ओढ़े थी कम्बख्त ठण्ड भी उस दिन बहुत पड़ रही थी । ठण्ड से उसके गाल और लाल हो गए थे । इतनी मासूम और शांत लड़की पहली बार देखा था मैंने !!  उसे देखते देखते कब दो महीने निकल गए पता ही नहीं चला.., हम दोनों का बैच बदल गया था हमारी मुलाकात महज़ रास्तों में पल भर के लिए होती थी । और उन्हीं दो पलों के मुलाकात से उसे पता चल गया था क

एक अविस्मरणीय दिन -- 9 जुलाई 2010

आज सात साल बाद मैं फिर उसी नौवीं 'सी' के सामने नीम के चबूतरे पर बैठ गया ..और देखने लगा 9th c के पीछे वाले दरवाजे पे चॉक से लिखा मेरा नाम जो मैंने ही लिखा था.. जहाँ से स्कूल के शुरूआती दिन साँस लेने लगे और मैं डूब गया एक बीती किन्तु अनमोल और अद्भुत दुनियां में..।                         # सात साल पहले  9 जुलाई 2010 एक अविस्मरणीय और बेशकीमती दिन था मेरे लिए । हाँ.. ये वही दिन था जिस दिन मार्तण्ड नम्बर 1 (एक्सीलेंस) स्कूल में मेरा पहला दिन था । यह एक और दिन था... जब मैं अपना नाम दुनियां के उन विद्यार्थियों के साथ दर्ज़ करा चुका था जो अपने घर से दूर रह कर किसी खास मकसद के लिए पढ़ते हैं । इस पहले दिन मेरे भइया मुझे ले गए । "यार..9th 'c' किधर है..?"-मैंने एक लड़के से पूँछा । "नीम के पेड़ के सामने वाला है.." -उसने उंगली दिखाते हुए कहा । "तुम लोग 9th 'c' के हो..?" - भइया ने वहां खड़े लड़कों से पूँछा । "हाँ..हम 9th 'c' के ही हैं " - एक मोटे लड़के ने कहा । मैं और भइया बात करने लगे.. वहीं एक और लड़का थ

परदे के भीतर

अब जाने डोली कहाँ रुके अब जाने शाम कहाँ पर हो.. अब जाने घूंघट कहाँ उठे, दूल्हन बदनाम कहाँ पर हो.. अब जाने कब रंग-रेज़ मिले, चूनर निष्काम कहाँ पर हो.. परदे के भीतर परदे में बेपर्दा श्याम कहाँ पर हो..।                  ----- गोपालदास 'नीरज'

एक चेहरा है

फ़िर वही मिलन के किस्से हैं फिर वही पुरानी बातें हैं.. फ़िर वही साज़ धड़कन वाला फ़िर वही पुराने नाते हैं.. मन में कुछ यादें बाक़ी हैं कुछ सपने अभी अधूरे हैं, कुछ लोगों से मिलना बाक़ी है कुछ ख़्वाब अभी न पुरे हैं, एक चेहरा है जो आँखों में यूँ अक्सर आता जाता है.. कुछ बात ग़ज़ब उस चेहरे में बस वो अपनी ही सुनता है.. वो जिसकी भी हो हो जाए मुझको इस पर ऐतराज नहीं, कुछ यादें साझा करनी हैं कुछ किस्से उसे सुनाने हैं, कुछ उससे कहना बाक़ी है कुछ उससे बातें करनी है, उससे मेरा रिश्ता ही नहीं वो अक्सर कहती रहती है.. मैं उससे हँसता रहता हूँ वो मुझसे गुस्सा रहती है, पर...उसकी मेरी हर बातों में एक रिश्ता अब भी बाक़ी है, वो ख़ामोशी का रिश्ता है वो ख़ामोशी के नाते हैं...।                        ----- विनय तिवारी

फ्रेंडशिप डे

आज कई दिनों बाद अपनी डायरी खोला, हलाँकि एक कहानी लिखने के लिए खोला था लेकिन तब फुरसत से नहीं खोला था । आज देखा तो सोचा की ज़िल्द चढ़ा दूँ जिससे थोड़ी अच्छी दिखने लगे । इतने दिन बाद खोला तो सोचा कुछ लिखूं...पर क्या ?? ज़िन्दगी की जिद्दोजहद परिकल्पनाएं इन कोरे पन्नो को कैसे सुनाऊं..? समझ नहीं आ रहा था बचपन के धूमिल पन्नो को पलटूं या बचपन के पार स्कूल लाइफ के बिखरे किताब के पन्नो को समेटूं ..? या फिर एक अनकही सी प्रेम कहानी... जिसका कोई वजूद नहीं..,जिसके ताजमहल की दीवारें कभी नहीं उठ सकीं...उसे ख्वाबों और उम्मीदों का पंख लगाकर उकेर दूँ कोरे पन्नों पर और उड़ा दूँ अनंत परिकल्पनाओं के आकाश में ...। बात दो साल पहले की है... जब मेरा प्रयाग (इलाहाबाद) में पहला साल था.. 2 अगस्त 2015 फ्रेंडशिप डे था उस दिन । मुझे आज तक किसी ने फ्रेंडशिप बैंड नहीं दिया था । मेरे कई सारे दोस्त बताते थे की ये बैंड फलां लड़की ने दिया ये फलां दोस्त ने दिया और अपनी खुशी ऐसे बाँटते जैसे इन्हें मिले बैंड की प्राइवेसी " फ्रेंड्स ऑफ़ फ्रेंड " हो । मेरी आज तक किसी लड़की से कोई दोस्ती नहीं हुई..हाँ जो