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माँ चामुंडेश्वरी देवी मंदिर, मोहाड़ी, भंडारा, महाराष्ट्र ।

माँ चामुंडेश्वरी देवी मंदिर, मोहाड़ी, भंडारा, महाराष्ट्र ।
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जब कोई मन्दिर किसी नदी के तट पर स्थित होता है तो उसमें एक स्वाभाविक खुलापन होता है जो उसके सौन्दर्य में अनायास ही वृद्धि करता है और दर्शक का मन खुले प्रांगण को देख कर आल्हादित होने लगता है । ऐसे स्थान हमेशा मेरी पसंद रहे हैं जो किसी नदी या समुद्र किनारे होते हैं जिनमें एक खुलापन होता है ।

                          माँ चामुंडेश्वरी देवी मन्दिर 

महाराष्ट्र के भंडारा जिले में मोहड़ी ग्राम पंचायत में अवस्थित यह मंदिर शक्ति पूजन मंदिर है जो कि समर्पित है माँ चामुंडा  को ।  यहाॅं पहुॅंचने के लिए ‘भंडारा रोड’ रेलवे स्टेशन से ऑटो मिल जाते हैं । स्टेशन से मंदिर की दूरी लगभग 10 कि. मी. गोंदिया की तरफ होगी ।

यह मंदिर एक स्थानीय नदी के तट पर है । यह नदी गाॅंव से सटी हुई पश्चिम दिशा में दक्षिण वाहिनी हो कर बहती हैं । नदी के पूर्व में ग्रामीणों के घर और पश्चिम में ग्राम वासियों के खेत हैं जहाँ वो अपनी बैल गाड़ी से जाते हैं  यानी नदी के इस पार जन्मभूमि और नदी के उस पार कर्मभूमि । बैलों एवम् अन्य पशुओं के लिए घास आदि के परिवहन का साधन यहाॅं बैलगाड़ी ही है । 

                    गांव की नदी में एकत्रित तरुणियाॅं व नारियाॅं

मैं मानता हूॅं, खेती अगर बहुत ज्यादा मात्रा में नहीं है तो उससे लाभ तभी प्राप्त हो सकता है जब हम पारम्परिक साधनों का ज्यादा प्रयोग कर सकें, जिससे लागत में कमी आएगी और लाभ ज्यादा प्राप्त हो सकेगा, इस गाॅंव के लोग इस सिद्धांत को बखूबी समझते हैं । न केवल इस गाॅंव के बल्कि जहाॅं तक मुझे पता है कम से कम उत्तरी पूर्वी महाराष्ट्र और दक्षिणी मध्यप्रदेश में तो है ही । ये इन पशुओं से प्रेम भी उतना ही करते हैं, जिसकी बानगी हैं इनके त्योहार । इन्होंने बैल पूजन का त्योहार ‘पोला’ भी अभी हाल ही में मनाया है । मुझे रंग- बिरंगे सजे- धजे कई बैलगाडियों में जुते हुए बैल मिले जिनका सौंदर्य मनमोहक था । 

                               ‘गौरी’ पूजन हेतु ।

मैंने यूट्यूब पर कई भारतीयों को अन्य देशों के गाॅंव दिखाते देखा है किंतु हमारे गाॅंव उनसे कमतर कहीं नहीं हैं बल्कि उन गाँवो में व्यक्ति आत्मकेंद्रित ज्यादा दिखते हैं जबकि हमारे यहाॅं समाज केंद्रीतता या कहूँ कि आत्म और बाह्य केंद्रीतता का साम्य बना रहता है । यह जीवन शैली ज्यादा सुन्दर, ज्यादा परिपक्व है । लोग उल्लास से भरे और सहयोगात्मक प्रवृत्ति रखते हैं, यह उसी प्रवृत्ति का बिम्ब है जो हम सब में दिखता है । 

आज हरतालिका तीज के अवसर पर नारियाँ व कन्याएँ गौरी पूजन हेतु नदी तट में एकत्रित थीं जो नदी पूजनोपरांत माँ चामुण्डा से अपने सुहाग और सौभाग्य के मङ्गलकामना की अभिलाषा लेकर पूजन करेंगी और माँ उसी तरह उनकी पूर्ति करेंगी जैसे माता सीता की पूर्ण हुई थी अभिलाषा ।

इत्यलम् ।
सितम्बर 18, 2023

- विनय एस तिवारी

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