Skip to main content

डायरी : 11 मार्च 2024

मैं अभी वरदान हॉस्पिटल रीवा में हूॅं यहाॅं एक परिवार में अभी-अभी बालक का जन्म हुआ है ।
सब खुश हैं, बच्चे का चाचा जो कि अभी लगभग 20 वर्ष का होगा, उसका नाम किसन है । वो अभी अपनी माॅं को फोन में बता रहा था की लल्ला हुआ!
बड़ी उमंग से बता रहा था!
वो बहुत प्रसन्न है ।
मैंने कहा - चाचा बन गए, बधाई हो! कहने लगा, सबको मिठाई खिलाऊॅंगा, आपको तो ढूॅंढ़ कर खिलाऊॅंगा! 
भारतीय जनमानस में यही खास बात है जो हमें अपरिचित होते हुए भी जोड़े रखती है । 


- विनय शंकर तिवारी
  11 मार्च, 2024
  वरदान हॉस्पिटल, रीवा

Comments

  1. क्या बात है तिवारी जी।

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

माँ चामुंडेश्वरी देवी मंदिर, मोहाड़ी, भंडारा, महाराष्ट्र ।

माँ चामुंडेश्वरी देवी मंदिर, मोहाड़ी, भंडारा, महाराष्ट्र । ___________________________________________ जब कोई मन्दिर किसी नदी के तट पर स्थित होता है तो उसमें एक स्वाभाविक खुलापन होता है जो उसके सौन्दर्य में अनायास ही वृद्धि करता है और दर्शक का मन खुले प्रांगण को देख कर आल्हादित होने लगता है । ऐसे स्थान हमेशा मेरी पसंद रहे हैं जो किसी नदी या समुद्र किनारे होते हैं जिनमें एक खुलापन होता है ।                            माँ चामुंडेश्वरी देवी मन्दिर  महाराष्ट्र के भंडारा जिले में मोहड़ी ग्राम पंचायत में अवस्थित यह मंदिर शक्ति पूजन मंदिर है जो कि समर्पित है माँ चामुंडा  को ।  यहाॅं पहुॅंचने के लिए ‘भंडारा रोड’ रेलवे स्टेशन से ऑटो मिल जाते हैं । स्टेशन से मंदिर की दूरी लगभग 10 कि. मी. गोंदिया की तरफ होगी । यह मंदिर एक स्थानीय नदी के तट पर है । यह नदी गाॅंव से सटी हुई पश्चिम दिशा में दक्षिण वाहिनी हो कर बहती हैं । नदी के पूर्व में ग्रामीणों के घर और पश्चिम में ग्राम वासियों के खेत हैं जहाँ वो अपनी बैल गाड़ी से जाते हैं  यानी नदी के इस पार जन्मभूमि और नदी के उस पार कर्मभूमि । बैलों

जब रात्रि बिखेरती है दूब की नोक पर मोती

ओ स की बूँद मुझे सबसे प्रिय लगती है, दूब की नोक पर । तिस पर मध्य रात्रि में पूर्णिमा की चाँदनी, जिसका प्रकाश ओस की बूँदों पर पड़ते ही प्रकीर्णित होता है, और बिखेर जाता है मोतियों सी चमक । मैंने तो जब घास पर ओस की बूँदों को देखा.., तो अनायास ही कह उठा  ‛मोतियों का गाँव!’ जैसे नैसर्ग ने दूब की नोक पर सजाई हो ओस के दीपों की वर्णमाला । जिसे कोई प्रकृति खोजी, कवि या दार्शनिक ही पढ़ सकता है, और बुन सकता है इस वर्णमाला से अनन्त किताबें । वो किताबें जो अक्षर से विहीन हों, क्योंकि भाषा की सीमा तो इस संसार तक सीमित है । इसके ऊपर की सत्ताओं को ‛अनुभव’ किया जा सकता है मात्र । ये दीपक प्रकृति का सौंदर्य है,श्रृंगार है धरित्री का । जिसे मात्र अपने अन्वेषियों के लिए ही सजाती हैं वसुंधरा । जैसे ललनाएँ सजती हैं, अपने सौंदर्य के अन्वेषी के लिए, अपने प्रियतम के लिए, या जैसे मूर्तियाँ अपने शिल्पकार के लिए, जो उकेरता है उनका सौंदर्य । कोई छैनी से, तो कोई शब्दों से । इसी में इनकी विराटता है, इसी में इनकी श्रेष्ठता है, इसी में इनका सौंदर्य है । -- विनय एस तिवारी