ब्रह्मचिन्ता
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योग की कदाचित एक अलभ्य पुस्तक ।
जिसके बारे में केवल पता चलता है पॉल ब्रन्टन की पुस्तक ‛गुप्त भारत के रहस्य' में ।
बनारस में एक बड़े ज्योतिषी थे सुधी बाबू । ऐसे ज्योतिषी जिनके पास एक आध्यात्मिक शक्ति भी है, समाधि भी है ।
सुधी बाबू यानि श्री सुधीर रंजन ।
सुधी बाबू बताते हैं कि ‛ब्रह्मचिन्ता’ का अस्तित्व गुप्त रखा गया किन्तु इसे तिब्बत में पाया गया था । वहाँ इसे पवित्र समझा गया और इसका अध्ययन केवल गिने चुने लोग ही करते थे ।
भृगु महराज ने हजारों वर्ष पूर्व इस महाग्रंथ की रचना की थी । भृगु ब्रह्मा जी के मानस पुत्र थे । ये एक महान ज्योतिषी थे जिन्होंने ‛भृगुसंहिता’ की रचना की जो आज भी उपलब्ध है । तथा इसकी पांडुलिपि नेपाल में उपलब्ध है ।
आपके प्रपौत्र भगवान परशुराम थे । इन्हीं भृगु ने ‛ब्रह्मचिन्ता’ की भी रचना की । उस समय यानी सुधी बाबू के कालखंड में मौजूद योग में यह एक विलक्षण और नवीन योग मार्ग था ।
ब्रह्मचिन्ता का अभिप्राय है ब्रह्म के बारे में चिन्तन करना, मनन करना यानी ब्रह्म जिज्ञासा ।
कहते हैं ‛ब्रह्मचिन्ता’ में बताए मार्ग का अनुसरण करने से गुरू तक कि आवश्यकता नहीं रह जाती, स्वयं आत्मा पथ प्रशस्त करती है । सुधी बाबू ने पॉल ब्रन्टन को इसकी दीक्षा दी ।
ब्रन्टन बताते हैं कि इस मार्ग में कई किस्म की योग पद्धतियाँ हैं जिनका उद्देश्य ‛आत्मभाव’ की दशा पैदा करना है। इसमें सबसे मुख्य मार्ग पर आरूढ़ होने पर दस मुख्य सीढ़ियों को पार करना होगा, तब जाकर मिलेगा ‛सत्च्चिदानंद’ का अमर रस । जिसे ही तो रसोवैशः कहा गया है ।
काश! ऐसे अनेक महाग्रंथों को विस्तारित किया जाता तो हमारे जीवन स्तर बहुत ऊपर उठ गए होते! आज भी हम इनके प्रति कब इच्छुक होंगे, कब प्रयासरत होंगे, कौन जाने?
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