मैं अभी वरदान हॉस्पिटल रीवा में हूॅं यहाॅं एक परिवार में अभी-अभी बालक का जन्म हुआ है । सब खुश हैं, बच्चे का चाचा जो कि अभी लगभग 20 वर्ष का होगा, उसका नाम किसन है । वो अभी अपनी माॅं को फोन में बता रहा था की लल्ला हुआ! बड़ी उमंग से बता रहा था! वो बहुत प्रसन्न है । मैंने कहा - चाचा बन गए, बधाई हो! कहने लगा, सबको मिठाई खिलाऊॅंगा, आपको तो ढूॅंढ़ कर खिलाऊॅंगा! भारतीय जनमानस में यही खास बात है जो हमें अपरिचित होते हुए भी जोड़े रखती है । - विनय शंकर तिवारी 11 मार्च, 2024 वरदान हॉस्पिटल, रीवा
छिंदवाड़ा डायरी - 25 जनवरी 2024 चित्र: प्रतीकात्मक आज पौष मास के शुक्ल पक्ष के पूर्णिमा की रात्रि चंद्रमा इतना प्रोज्ज्वल था की बिना किसी अन्य प्रकाश के इस धरित्री और नभ के इस शीतयुक्त सौंदर्य को आँखभर निहारा जा सकता था। इस समय मैं दक्षिणी मध्य प्रदेश में हूॅं इसीलिए इस सुख से लाभान्वित हो पा रहा हूं क्योंकि उत्तरी मध्य प्रदेश सहित समूचा उत्तरी भारत इस समय भीषण शीत और कोहरे से ढंका हुआ है । वहाँ तो इस सौंदर्य का स्वादन करना कहाँ संभव है ? वहाँ ऐसा आनंद ग्रीष्म में ही मिलता है जब चांदनी रातें फाल्गुन से ज्येष्ठ तक निरंतर प्रोज्जवल होती चली जाती है । चंद्र का यह नव प्रकाश धरित्री को धवल चंद्र प्रभा से विभोर कर देती है । यह सुख तो आत्मविभोर करने वाला है ही किन्तु शीत में चंद्र प्रभा का सौंदर्य देखना उत्तर भारत में बहुधा कम ही होता है । यह चाॅंदनी चाहे शिशिर ऋतु की हो या ग्रीष्म ऋतु की, होती बड़ी मनमोहक है और साथ रहता है अनावृत एकान्त । अमृतलाल वेगड़ जी यूँ ही नहीं कहते कि चन्द्रमा के पास ऐसा जामन है जो कि सूर्य के तेज और तापयुक्त प्रकाश को शीतल और कोमल